साबुदाना के बारे मे ये बातें जानकार आप हैरान हो जाएंगे | sabudana kaise banta hai

साबूदाना एक प्रकार की खाने की चीज है जो छोटे-छोटे मोदी की तरह गोल और सफेद होती है। साबूदाना का इस्तेमाल करके व्रत में फलहार की चीजें बनाई जाती है।

यह किसी अनाज से नहीं बनता इसलिए यह बहुत ही शुद्ध माना जाता है। साबूदाना में प्रोटीन, विटामिन, मिनरल, कार्बोहाइड्रेट जैसे भरपूर न्यूट्रिएंट्स पाए जाते हैं।

साबूदाना एक तरह के सागो पाम ट्री के स्टार्च से बनाया जाता है, भारत में सबसे पहले साबूदाने का उत्पादन तमिलनाडु और राज्य के सेलम में हुआ था।

यह टैपियोका से बनाया जाता है जिसे कसावा के नाम से भी जाना जाता है। भारत, दक्षिण अमेरिका, पुर्तगाल, वेस्ट इंडीज सहित कई देशों में साबूदाना काफी ज्यादा प्रसिद्ध है।

sabudana kaise banta hai

Table of Contents

साबूदाना को इंग्लिश में क्या कहते हैं? Sabudana in English

साबूदाना को इंग्लिश मे tapioca pearl या sago कहते हैं ।

साबूदाना का इतिहास

साबुदाना मूल रूप से दक्षिण अमेरिका का native plant जहां से समय के साथ यह पूरे दुनिया मे फ़ाइल और लगाया जाने लगा ।

कसावा के पौधे को 16वीं शताब्दी में पुर्तगाली व्यापारियों द्वारा भारत में लाया गया था और धीरे-धीरे यह भारतीय व्यंजनों में लोकप्रिय हो गया। साबूदाना का उपयोग सदियों से भारतीय व्यंजनों में किया जाता रहा है, खासकर भारत के पश्चिमी और दक्षिणी हिस्सों में।

इन क्षेत्रों में यह अक्सर चावल या गेहूं आधारित उत्पादों के विकल्प के रूप में उपयोग किया जाता है, खासकर धार्मिक त्योहारों और उपवासों के दौरान।

ब्रिटिश औपनिवेशिक युग के दौरान साबूदाना ने भारत में अंग्रेजों के बीच लोकप्रियता हासिल की, जिन्होंने इसे अपने व्यंजनों में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। साबुदाना की लोकप्रियता दक्षिण पूर्व एशिया और अफ्रीका सहित दुनिया के अन्य हिस्सों में भी बढ़ी है।

आज साबुदाना दुनिया के कई हिस्सों में विशेष रूप से भारत और दक्षिण पूर्व एशिया में एक लोकप्रिय सामग्री है, और इसका उपयोग मीठे और नमकीन दोनों तरह के व्यंजनों की एक विस्तृत श्रृंखला में किया जाता है।

इसके स्वाद और पोषण संबंधी लाभों के साथ-साथ खाना पकाने में इसकी बहुमुखी प्रतिभा के लिए इसका आनंद लेना जारी है।

sabudana kaise banta hai

साबूदाना के फायदे

साबुदाना, जिसे tapioca pearls के रूप में भी जाना जाता है, cassava roots से प्राप्त एक स्टार्चयुक्त भोजन है। साबुदाना के सेवन के कुछ संभावित लाभ इस प्रकार हैं:

ऊर्जा प्रदान करता है

साबूदाना कार्बोहाइड्रेट का एक समृद्ध स्रोत है और अच्छी मात्रा में ऊर्जा प्रदान करता है। उपवास के दौरान अक्सर इसका सेवन किया जाता है क्योंकि यह आपको पूरे दिन भरा हुआ और ऊर्जावान बनाए रखने में मदद करता है।

पचने में आसान

साबूदाना पचने में आसान होता है, जो इसे पाचन संबंधी समस्याओं वाले लोगों या बीमारी से उबरने वालों के लिए एक अच्छा विकल्प बनाता है।

ग्लूटेन-मुक्त

साबुदाना स्वाभाविक रूप से gluten-free होता है, जो इसे उन लोगों के लिए एक बढ़िया विकल्प बनाता है जिन्हें ग्लूटेन से एलर्जी है या सीलिएक रोग है।

वसा और प्रोटीन में कम

साबूदाना में वसा और प्रोटीन कम होता है, जो इसे उन लोगों के लिए एक बढ़िया विकल्प बनाता है जो वजन कम करने या स्वस्थ वजन बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं।

खनिजों का अच्छा स्रोत

साबूदाना कैल्शियम, आयरन और फास्फोरस जैसे खनिजों का एक अच्छा स्रोत है। ये खनिज स्वस्थ हड्डियों और दांतों को बनाए रखने और सामान्य शारीरिक कार्यों का समर्थन करने के लिए आवश्यक हैं।

कुल मिलाकर साबुदाना आपके आहार में एक स्वस्थ जोड़ हो सकता है, जब इसे कम मात्रा में और संतुलित आहार के हिस्से के रूप में सेवन किया जाता है।

साबुदाना कैसे बनता है sabudana kaise banta hai

कसावा और टैपिओका एक कन्द वाली फसल की श्रेणी में आती है, इसकी जड़ों में स्टार्च की भारी मात्रा होती है, जिसे साबूदाना बनाने में इस्तेमाल किया जाता है।

आमतौर पर इसकी खेती दक्षिण भारत में की जाती है हालांकि अब मध्य प्रदेश के किसान भी इसकी खेती करने लगे हैं। तकनीकी तरीके से साबूदाना को किसी भी स्टार्च युक्त पेड़ पौधों के गूदे से बनाया जा सकता है, लेकिन टपिओका में अधिक स्टार्च होने की वजह से इस पौधे को  उत्पादन के लिए उपयुक्त पाया गया है।

कसावा और टैपिओका के रोपण का मौसम

कसावा और टैपिओका खेती कन्द के जमीन में रोपाई से की जाती है। दिसम्बर का महीना रोपाई के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है, हालांकि आप चाहे तो सालभर में कभी भी इसकी रोपाई कर सकते हैं।

कसावा और टैपिओका जलवायु

कसावा और टैपियोका की फसल गर्म एवं आद्र जलवायु में अच्छे से विकसित होता है, और यदि पौधा अगर एक बार अच्छे से लग गया तो यह सुखा भी सहन कर लेता है। वैसे तो कसावा के लिए सभी मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है लेकिन क्षारीय मिट्टी, गैर-सूखा मिट्टी और खारा मिट्टी उपयुक्त नहीं मानी जाती है।

भारत में कसावा का पेड़ कहां लगता है

भारत में अधिकतर कर्नाटक तमिलनाडु केरला आंध्र प्रदेश राज्यों में कसावा की खेती की जाती है। हालांकि अब मध्यप्रदेश के कुछ क्षेत्रों में भी इसकी खेती शुरू की गई है।

कसावा की उन्नत किस्में

कसावा की सबसे उन्नत किस्म H-97 है, क्योंकि यह काफी ज्यादा उत्पादन देने वाली किस्मों में शामिल है, इसमें स्टार्च की मात्रा 27 से 29 प्रतिशत तक होती है।

इसके बाद H-165 भी अच्छी किस्म है, इसमें स्टार्च की मात्रा 25 से 27 प्रतिशत होती है। कसावा की H-226 किस्म हाइब्रीड किस्म मध्यम लम्बाई की है, इसमें स्टार्च की मात्रा 27 से 29 प्रतिशत होती है।

साथ ही श्री विसखाम, श्री हर्षा, श्री सहया, श्री विजया, श्री प्रकाश भी मुख्य किस्में है।

sabudana kaise banta hai
sabudana tikki

कसावा और टैपिओका रोपण प्रक्रिया

कसावा और टैपिओका के रोपण के लिए तीन अलग प्रकार की विधियां अपनाई जाती है।

1-समतल विधि: समतल भूमि या अच्छी जल निकासी पर इस विधि का इस्तेमाल करके कसावा की रोपाई की जाती है।

2-टीला विधि: जब मिट्टी की जल निकासी अच्छी ना हो तो टीला विधि का इस्तेमाल किया जाता है, इस विधि में 25-30 सेमी की ऊंचाई के टीले लगाए जाते हैं और फिर उन्हीं टीलों पर कसावा के कन्द को रोपा जाता है।

3-रिज विधि: बारिश वाली जगहों में या सिंचित क्षेत्र में समतल भूमि या फिर ढलानदार भूमि में इस विधि का इस्तेमाल किया जाता है, और रिज की ऊंचाई 25-30 सेमी तक होती है।

 कसावा और टैपिओका में लगने वाले रोग

कसावा और टैपिओका में मिलीबग, सफेद मक्खी, मोजेक रोग, भूरी पत्ती धब्बा रोग और कन्द सड़न रोग लग जाते है। इन सब से बचाव के लिए आप कृषि सेंटर में जाकर इनके रोकथाम की दवाई ले सकते हैं।

कसावा स्टार्च से साबूदाना का मोती कैसे बनता है

  • कसावा कंद को सबसे पहले पानी से धोया जाता है और फिर उसका छिलका निकाला जाता है।
  • इसके बाद कंद को क्रश करके उसका जूस निकालकर कुछ दिनों के लिए स्टोर कर दिया जाता है।
  • जूस को स्टोर करने से अधिक मात्रा में स्टार्च नीचे बैठ जाते हैं और ऊपर पानी आ जाता है।
  • इतना करने के बाद पानी को स्टार्च से अलग किया जाता है।
  • अब इस स्टार्च को मशीन में डाल दिया जाता है, छलनी जैसे छेदों वाली मशीन इस स्टार्च को साबूदाना सफेद मोती में बदल देती है।
  • हालांकि अभी ये साबूदाना के मोती बहुत ही रफ होते हैं, इसलिए ग्लूकोज और दूसरे स्टार्च से बने पाउडर से पॉलिश किया जाता है।
  • साबूदाना के मोती को पॉलिश करने के बाद इन्हें पैकेट में पैक किया जाता है और फिर यह मार्केट में बिकने के लिए तैयार होते हैं।

साबूदाना से बनने वाले पकवान

साबूदाना का उपयोग विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाने के लिए किया जा सकता है, जिनमें निम्न शामिल हैं:

साबुदाना खिचड़ी

साबूदाना, मूंगफली, आलू और मसालों से बना एक लोकप्रिय भारतीय व्यंजन है।

साबूदाना वड़ा

मैश किए हुए आलू, साबूदाना और मसालों से बना एक डीप फ्राई स्नैक।

साबुदाना खीर

साबूदाना, दूध, चीनी और इलायची से बनी मिठाई।

साबूदाना पापड़

साबूदाना के आटे, जीरा और नमक से बना एक कुरकुरा नाश्ता।

sabudana kaise banta hai

साबुदाना थालीपीठ

साबूदाना के आटे, आलू और मसालों से बना एक स्वादिष्ट पैनकेक।

साबूदाना लड्डू

साबूदाना, गुड़ और नारियल से बना एक मीठा व्यंजन।

साबूदाना नमकीन

साबुदाना, मूंगफली और मसालों से बना एक कुरकुरे नाश्ता।

साबुदाना का उपयोग करके बनाए जाने वाले कई व्यंजनों के ये कुछ उदाहरण हैं। यह एक बहुमुखी सामग्री है जिसका उपयोग मीठे और नमकीन दोनों तरह के व्यंजनों में किया जा सकता है।

आपको यह जानकारी कैसी लगी हमे कमेन्ट करके जरूर बताएं । ऐसी ही कई रोचक और उपयोगी जानकारी के लिए hindigarden से जुड़े रहिए ।

Leave a Comment

x