मूंगफली के बारे मे ये सब बातें आप नहीं जानते होंगे | Peanut in hindi

मूंगफली एक प्रकार की फलियां हैं जो दुनिया भर में लोकप्रिय हैं। वे प्रोटीन, स्वस्थ वसा और विभिन्न विटामिन और खनिजों का एक उत्कृष्ट स्रोत हैं। peanut in hindi

मूंगफली को अक्सर स्नैक के रूप में खाया जाता है, खाना पकाने में एक घटक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, या peanut butter  में बनाया जाता है।

मूंगफली monounsaturated और polyunsaturated वसा से भरपूर होती है, जिसे “अच्छा” वसा माना जाता है जो कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने और हृदय रोग के जोखिम को कम करने में मदद कर सकता है। इनमें फाइबर भी होता है, जो पाचन स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और कब्ज को रोकने में मदद कर सकता है।

Peanut in hindi

मूंगफली peanut in hindi

भारत के राजस्थान राज्य में मूंगफली की खेती 3.47 लाख हैक्टर के क्षेत्र में की गई, जिसका कुल उत्पादन तक़रीबन 6.81 लाख टन के आसपास रहा, आपको बता दें राजस्थान के बीकानेर जिले के लूणकरनसर में अच्छी किस्म की मूँगफली का अच्छा उत्पादन होने के कारण इसे राजस्थान का राजकोट के नाम से जाना जाता है।

मूंगफली के दानों का इस्तेमाल खासतौर से तेल निकालने के लिए किया जाता है इसके साथ ही इस के दानों का इस्तेमाल खाने के लिए भी किया जाता है।

मूंगफली के दानों में 25% प्रोटीन पाया जाता है इसलिए इसकी तुलना दूध, अंडा मांस जैसे प्रोटीन से भरपूर वाली चीजों से की जाती है। मूंगफली के फल जमीन के अंदर पाए जाते हैं इसलिए उसे मिट्टी से खोदकर निकालना पड़ता है।

आज के अपने इस लेख में हम मूंगफली की खेती कैसे की जाए, खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान तथा मूंगफली की उन्नत किस्मे  से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी आपको देने जा रहे हैं।

Peanut in hindi

moongfali in english

मूंगफली को इंग्लिश मे peanut कहते हैं , इसका वानस्पतिक नाम Arachis hypogaea है ।

मूंगफली का इतिहास

माना जाता है कि मूंगफली दक्षिण अमेरिका में पैदा हुई थी, लेकिन इसे 16 वीं शताब्दी के दौरान पुर्तगाली व्यापारियों द्वारा भारत में पेश किया गया था।

प्रारंभ में, मूंगफली को कम मूल्य वाली फसल माना जाता था और मुख्य रूप से पशु चारे के रूप में उपयोग किया जाता था। हालाँकि, समय के साथ, वे मनुष्यों के लिए भी पोषण का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन गए और उनकी लोकप्रियता बढ़ती गई।

आज, भारत दुनिया में मूंगफली के सबसे बड़े उत्पादकों और उपभोक्ताओं में से एक है। गुजरात, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र भारत के प्रमुख मूंगफली उत्पादक राज्य हैं।

मूंगफली का इस्तेमाल भारतीय खाने में कई तरह से किया जाता है। करी, चटनी और स्नैक्स सहित कई शाकाहारी व्यंजनों में वे एक आम सामग्री हैं।

दरअसल मूंगफली और गुड़ से बनी मिठाई मूंगफली की चिक्की पूरे देश में एक लोकप्रिय नाश्ता है. पाक कला में उपयोग के अलावा, भारत में मूँगफली का महत्वपूर्ण आर्थिक और पोषण मूल्य भी है। वे कई लोगों के लिए प्रोटीन और स्वस्थ वसा का एक प्रमुख स्रोत हैं, और वे देश के कई हिस्सों में किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण नकदी फसल हैं।

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आज, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, भारत और अफ्रीका सहित दुनिया के कई हिस्सों में मूंगफली उगाई जाती है। उनका उपयोग विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों में किया जाता है, स्नैक्स और कैंडी से लेकर सूप और सॉस तक।

मूंगफली का उपयोग मूंगफली का तेल बनाने के लिए भी किया जाता है, जिसका उपयोग खाना पकाने में और कई कॉस्मेटिक उत्पादों के आधार के रूप में किया जाता है।

मूंगफली के फायदे

मूंगफली के कई संभावित स्वास्थ्य लाभ हैं, जिनमें शामिल हैं:

पोषक तत्वों से भरपूर

मूंगफली प्रोटीन, फाइबर, विटामिन (जैसे विटामिन ई, बी3, बी6), खनिज (जैसे मैग्नीशियम, फास्फोरस, पोटेशियम, जिंक) और एंटीऑक्सीडेंट का एक अच्छा स्रोत है।

हृदय स्वास्थ्य

मूंगफली असंतृप्त वसा में उच्च होती है, जो कोलेस्ट्रॉल के स्तर को सुधारने और हृदय रोग के जोखिम को कम करने में मदद कर सकती है।

रक्त शर्करा नियंत्रण

मूंगफली में कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है, जिसका अर्थ है कि वे रक्त शर्करा के स्तर में तेजी से वृद्धि नहीं करते हैं, जिससे वे मधुमेह वाले लोगों के लिए एक अच्छा नाश्ता बन जाते हैं।

वजन प्रबंधन

मूंगफली एक संतोषजनक स्नैक है जो आपको भरा हुआ महसूस कराने और अधिक खाने को कम करने में मदद कर सकता है।

मस्तिष्क स्वास्थ्य

मूंगफली में स्वस्थ वसा, एंटीऑक्सिडेंट और अन्य पोषक तत्व होते हैं जो मस्तिष्क की रक्षा करने और संज्ञानात्मक कार्य में सुधार करने में मदद कर सकते हैं।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मूंगफली भी एक सामान्य एलर्जेन है और कुछ लोगों में गंभीर एलर्जी प्रतिक्रिया पैदा कर सकता है। यदि आपको मूंगफली से एलर्जी है, तो आपको मूंगफली और मूंगफली के उत्पादों से बचना चाहिए।

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मूंगफली की खेती

मूंगफली की अच्छी खेती में भूमि उचित जल निकासी वाली होनी चाहिए, इसकी खेती के लिए हल्की पीली दोमट मिट्टी की जरूरत होती है। कठोर चिकनी मिट्टी और जलभराव में मूंगफली की खेती नहीं करनी चाहिए।

इसकी खेती के लिए मिट्टी का पीएच वैल्यू 6.5 से 7 होना चाहिए। मूंगफली के दानों की खेती शुष्क प्रदेशो में अधिक की जाती है, मूंगफली के पौधों को अच्छे से विकसित होने के लिए प्रकाश और गर्मी की जरूरत पड़ती है।

इसके पौधे न्यूनतम 15 डिग्री से लेकर 35 डिग्री तक का तापमान ही सहन कर पाते हैं। इसके साथ ही इनको 60 से 130 सेंटीमीटर तक वर्षा की भी जरूरत पड़ती है।

मूंगफली की बुवाई के लिए बीज की मात्रा 70-80 किग्रा./हे होनी चाहिए, यदि आप इसकी बुवाई देरी से करना चाहते हैं तो 10 से 15 प्रतिशत बीच की मात्रा को बढ़ाना पड़ेगा। मूंगफली की बुवाई के समय पंक्ति से पंक्ति की दूरी 35 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर होनी चाहिए।

मूंगफली के दानों की अच्छी किस्में

मूंगफली की एच.एन.जी.-10, एम-13, टी.जी.-37, मल्लिका, आर. जी. 425, जी जी 2, टी.बी.जी.-39 आदि मूंगफली की किस्में अच्छी उपज देने वाली है। एक बीघा क्षेत्र के लिए एच.एन.जी.-10 का 20 किग्रा बीज का इस्तेमाल करें, और वहीं दूसरी तरफ एम-13, चंद्रा और मलिका किस्मों के लिए 15 किग्रा बीज का का इस्तेमाल करें। बीजाई के 15 दिन से पहले बीज नहीं आनी चाहिए।

मूंगफली की खेती में उवर्रक की मात्रा और तैयारी

मूंगफली के पौधों के लिए भुरभुरी मिट्टी की जरूरत होती है, जिसके लिए सबसे पहले खेत में मिट्टी पलटने वाले हेलो से खेत में गहरी जुताई किया करते हैं। जुताई पूरी होने के बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खाली छोड़ दिया जाता है, जिससे कि खेत की मिट्टी को अच्छे से धूप मिल सके।

इसके बाद खेत में करीब 15 गाड़ी पुरानी गोबर का खाद मिट्टी में डाल कर अच्छे से मिलाया जाता है। खाद जब मिट्टी में अच्छी तरह से मिल जाए तब पानी लगाकर पलेव करा करा जाता है।

इतना करने के बाद जब खेत की मिट्टी की ऊपरी परत सूखी पड़ने लगती है तो रोटावेटर के जरिए खेत की अच्छे से जुताई कर दी जाती है। इसके बाद मूंगफली की खेती के लिए मिट्टी हमारी भुरभुरी हो जाती है। मिट्टी के भुरभुरा होने के बाद खेत में पाटा लगाकर खेत को समतल किया जाता है।

मूंगफली की खेत में आप चाहे तो प्राकृतिक खाद के स्थान पर रसायनिक खाद का इस्तेमाल भी कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए आपको जुताई से पहले एन.पी.के. की 60KG की मात्रा खेत में डाली जाती है।

इसके अलावा एक हेक्टेयर के खेत में 250 KG जिप्सम का छिड़काव भी करना पड़ता है। इसके साथ ही आपको बता दें मूंगफली की खेती के लिए नीम की खली भी बहुत ही फायदेमंद होती है और पैदावार में भी वृद्धि आती है इसलिए जुताई के आखिरी समय में एक हेक्टेयर के खेत में लगभग 400 किलोग्राम नीम की खली का फैलाव भी करना चाहिए।

मूंगफली की खेती के लिए उसके बीज का उपचार

किसी भी फल की खेती करने से पहले उसके बीच का उपचार करना काफी ज्यादा फलदायक होता है, मूंगफली के बीज को बुवाई करने से पहले राइजोबियम कल्चर से मिलाना चाहिए।

इसके लिए आधा लीटर पानी में 50 ग्राम गुड़ घोलकर 250 ग्राम राइजोबियम कल्चर मिला ले और फिर 10 किलो बीच में इसका छिड़काव करें और फिर हाथ से मिलाए जिससे कि बीज पर हल्की सी परत बन जाए। इसके बाद मूंगफली की बीज को सूखने के लिए रख दें।

मूंगफली की बीजो में रोपाई का सही तरीका और समय

मूंगफली के बीजों की रोपाई जून और जुलाई के मध्य में करना सही माना जाता है इस में पैदावार अच्छी होती है। मूंगफली के खेत में बुवाई करने से पहले फलियों से बीज को निकाल लिया जाता है, उसके बाद बीजों को कार्बेन्डाजिम या मेन्कोजेब की मात्रा से उपचारित किया जाता है, जिससे बीज में रोग नहीं लगते और बीज का अंकुरण भी अच्छे से होता है।

मूंगफली के बीजों की रोपाई समतल भूमि में मशीन के द्वारा की जाती है, और कम फैलाव वाली गुच्छेदार किस्म के लिए हर पत्ते के बीच 30 सेंटीमीटर की दूरी रखी जाती है, और अधिक फैलाव वाले पत्तों के बीच 40 से 45 से 1 मीटर की दूरी रखी जाती है।

इन सभी पत्तों में हर बीज की रोपाई में 6 सेंटीमीटर की गहराई और 15 सेंटीमीटर की दूरी पर की जाती है।

मूंगफली की खेत में सिंचाई

जैसा कि आप जानते हैं, मूंगफली की खेत की फसल खरीफ की होती है, जिसके कारण इसके पौधों को अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है क्योंकि सभी खरीफ की फसल बरसात के मौसम में की जाती है।

लेकिन अगर बरसात समय पर नहीं हुई तो इसके लिए आपको पौधों को जरूरत के अनुसार पानी देना पड़ेगा। ध्यान रहे कि जब पौधे में फल और फलिया लगने लगे तो उस समय में खेत में नमी की मात्रा को बनाए रखना जरूरी है इससे पैदावार अच्छी होती है।

 मूंगफली के खेत में लगने वाली खरपतवार

मूंगफली के खेत को खरपतवार बहुत ही नुकसान पहुंचाती है, यदि पौधों में अधिक खरपतवार हो गई तो उत्पादन करीब 30% कम हो जाता है।

मूंगफली की फलियां धरती से सामान्य गहराई में होती है और प्याजा, मेथा, डूब, सामक खरपतवार की जड़े भी धरती से सामान्य गहराई में होती है, जिसके चलते खरपतवार पौधों को काफी ज्यादा नुकसान पहुंचा देता है।

मूंगफली के पौधों में खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए आप प्राकृतिक और रासायनिक दोनों ही तरीकों का इस्तेमाल कर सकते हैं।

रसायनिक तरीके से खरपतवार पर नियंत्रण पाने के लिए आपको 500 लीटर पानी में 3 लीटर पेन्डिमेथालिन की मात्रा को डालकर बढ़िया से मिला लेना है और बीज रोपाई के 2 दिन बाद तक इसका छिड़काव फसल पर करना है।

वहीं अगर आप प्राकृतिक तरीके से खरपतवार में नियंत्रण पाना चाहते हैं तो खेत की तीन से चार गुड़ाई करना होगा। पहली गुड़ाई बीज लगाने के 20 से 25 दिन बाद और इसी के अंतराल में चार बार गुड़ाई करनी होगी।

मूंगफली के पौधों में लगने वाले कीड़े और रोग

मूंगफली के पौधों में दीमक, हेयरी कैटरपिलर, सफेद गीडार, आदि कई प्रकार के कीड़े लगते हैं इसके साथ ही मूंगफली के पौधों मे कॉलर रोग, पीलिया रोग, बड नेक्रोसिस और टिक्का रोग आदि प्रकार का रोग लगता है।‌

इन सभी की रोकथाम के लिए कई प्रकार की दवाइयां मार्केट में उपलब्ध है आप खेती किसानी के किसी भी मार्केट में जाकर इसे प्राप्त कर सकेंगे।

मूंगफली की पैदावार लाभ और खुदाई

मूंगफली की फसल की खुदाई 4 महीने बाद की जाती है, जब मूंगफली के पौधे पके पके दिखाई देने लगे तब मूंगफली की खुदाई कर लेनी चाहिए।

आज के समय में इसकी खुदाई मशीन के द्वारा की जाती है, जिससे सभी किसान अपने पैसों की बचत कर सके। फसल की खुदाई करने के बाद इसे सूखने के लिए रखा जाता है, लेकिन जिन फलियों में नमी पूरी तरह खत्म हो जाती है उनमें फफूंद लगने का खतरा बढ़ने लगता है।

मूंगफली की एक हेक्टर फसल में करीब 20 से 25 कुंटल की पैदावार होती है, और मार्केट में वह मूंगफली 40 से 60 रुपए किलो के हिसाब से बिकती है। मूंगफली की बुवाई करने वाले किसानों को एक फसल से करें 80000 से 1,20,000 रुपए तक की कमाई हो जाती है।

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